नई दिल्ली। मीडिया के कई हिस्सों में आ रही पराठें पर जीएसटी की खबरों के बाद सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्ट टैक्स एंड कस्टम्स ने सफाई दी है। CBIC के मुताबिक अथॉरिटी ऑफ एडवांस रूलिंग ने फैसला दिया है कि फ्रोजन या फिर प्रिजर्व्ड पराठों को रोटी या फिर खाकरा जैसी खाद्य वस्तुओं के समान नहीं मान सकते। एएआर जीएसटी मामलों पर विचार करती है। अथॉरिटी के मुताबिक ऐसे गेहूं का परांठा और मालाबार परांठा की शेल्फ लाइफ 3 से 7 दिन तक होती है और ये आम रोटी से अलग है जो कि पूरी तरह से पक कर तैयार होती है।
1/4 With reference to some news items being circulated in a section of media about GST rate on Frozen Parota it is stated that Authority for Advance Ruling (AAR) of Karnataka (A judicial body which decides on a class of GST issues) @nsitharamanoffc @FinMinIndia @ianuragthakur
— CBIC (@cbic_india) June 12, 2020
एएआर के मुताबिक आम रोटी या इसी तरह से पूरी तरह तैयार हुई वस्तुओं की तरफ फ्रोजन पराठों को निचली जीएसटी दरों में नहीं रखा जा सकता । क्योंकि खाने से पहले इसे और प्रसंस्कृत करने की जरूरत होती है, और न ही ये अनिवार्य खाद्य पदार्थ हैं। ऐसे में इसपर 18 प्रतिशत की दर से माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लगेगा।
2/4 The authority has decided that frozen (and preserved) wheat parota and malabar parota available in ambient and frozen form with a shelf life of 3-7 days is not plain roti but is a distinct product.
— CBIC (@cbic_india) June 12, 2020
दरअसल बेंगलुरु की कंपनी आईडी फ्रेश फूड्स ने एएआर की कर्नाटक पीठ के समक्ष आवेदन कर पूर्ण गेहूं का परांठा और मालाबार परांठा पर जीएसटी दर के बारे में पूछा था। कंपनी रेडी-टु-कुक उत्पाद मसलन इडली, डोसा, परांठा और चपाती बेचती है। एएआर ने अपने निष्कर्ष में कहा है कि सीमा शुल्क के शुल्क कानून या जीएसटी शुल्क में परांठे को लेकर कोई विशिष्ट प्रविष्टि नहीं है। एएआर ने कहा कि 5 प्रतिशत की जीएसटी दर उन उत्पादों पर लागू होगी जो 1905 या 2016 के शीर्षक के तहत आते हैं। ऐसे उत्पाद खाखरा, सादी चपाती और रोटी हैं। परांठा 2016 शीर्षक के तहत आता है। यह न तो खाखरा है, न ही सादी चपाती या रोटी। एएआर ने कहा कि खाखरा, सादी चपाती और रोटी पूरी तरह तैयार सामग्री है। इन्हें उपभोग के लिए और तैयार करने की जरूरत नहीं होती। वहीं परांठा या मालाबार परांठा इन उत्पादों से अलग है। इसके अलावा ये आम उपभोग के और आवश्यक प्रकृति के उत्पाद भी नहीं है। मानव उपभोग के लिए इनका और प्रसंस्करण करने या तैयार करने की जरूरत होती है।
एएमआरजी एंड एसोसिएट्स के वरिष्ठ भागीदार राजन मोहन ने कहा कि इन उत्पादों में कर का अंतर 13 प्रतिशत का है जिसकी वजह से रोटी और परांठे के वर्गीकरण को लेकर विवाद पैदा हुआ है। जमीनी वास्तविकता यह है कि आम भारतीय भाषा में इन शब्दों का एक जैसे ही इस्तेमाल किया जाता है।
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